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मंदार शिंदे
Mandar Shinde

Saturday, January 16, 2010

बंधन

आसमाँ ने कहा जमीं से,
तू मेरे आगे कुछ भी नही,
मैं कभी नही मिलूँगा तुझसे
मुझे तेरी जरुरत नही।
जमीं से रुठकर आसमाँ ने
उठा लिये अपने पर
और फैला दिये हवाओं में
ढूँढने कोई नया हमसफर।
सारे जहाँ में कोई न मिला
तो थक गया आसमाँ भी,
सिमट गया फिर वो विशाल
दूर कहीं जमीं पर ही।
मन ही मन मुस्काई धरती
उसके दिल को भी चैन आया,
चाहे जो कहे सुबह का भूला
शुक्र है शाम को लौट आया॥

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