
ऐसी अक्षरे
Friday, January 12, 2024
Friday, August 11, 2023
Aa Tod De Deewar (Hindi Poem)
आ तोड़ दें दीवार अपने बीच जो आयी
चल बाँधते हैं राह दिलों को जोड़नेवाली
प्यार के पुलों से जोड़ेंगे दुनिया सारी
चल बाँधते हैं राह दिलों को जोड़नेवाली
मैं कौन, कौन है तू
मैं ना जानू, जाने ना तू
चल छोड दे यह भेद, ना बनना तू अविचारी
चल बाँधते हैं राह दिलों को जोड़नेवाली
यह हिंदू, वह मुस्लिम क्यूँ है
भेद है कैसा, मानव सारे
जाती या धर्मों से हमको मानवता प्यारी
चल बाँधते हैं राह दिलों को जोड़नेवाली
तूफान, हमको डरातें
दरिया में है उठती लहरें
चल लेकर इसमें नाव अपनी तैरनेवाली
चल बाँधते हैं राह दिलों को जोड़नेवाली
प्यार के पुलों से जोडेंगे दुनिया सारी
चल बाँधते हैं राह दिलों को जोड़नेवाली

Aa Tod De Deewar (Hindi Poem)
Sunday, April 16, 2023
Main Hoon Badal (Poetry)
मैं हूँ बादल, मैं हूँ बादल
रंग है मेरा जैसे काजल
उडता फिरता आसमान में
धरती पर बरसाऊँ मैं जल
मैं हूँ बादल, मैं हूँ बादल
पेड और पौधे मुझको प्यारे
हरियाले और शीतल न्यारे
इनसे मिलने आऊँगा कल
मैं हूँ बादल, मैं हूँ बादल
मेरा काम है पानी देना
सूखे जग की प्यास बुझाना
नदियों का मैं भर दूँ आंचल
मैं हूँ बादल, मैं हूँ बादल
तुमने जब जब मुझको बुलाया
मैं भी दौडा दौडा आया
रुकने दो अब मुझको दो पल
मैं हूँ बादल, मैं हूँ बादल
- मंदार 9822401246

Main Hoon Badal (Poetry)
Sunday, April 9, 2023
Tuesday, December 27, 2022
Discovery of India - Title Song

Discovery of India - Title Song
Friday, January 22, 2021
Gumshuda Kaun (Hindi Poem)

Gumshuda Kaun (Hindi Poem)
Coffee Shop Chalte Hain (Hindi Poem)
Monday, November 23, 2020
Dreams and Their Meanings

Dreams and Their Meanings
Wednesday, May 27, 2020
Sar Zuka Ke Zameen Par Rakhne Se... (Gulzar)

Sar Zuka Ke Zameen Par Rakhne Se... (Gulzar)
Saturday, January 18, 2020
नाटक है...
कुछ और नहीं यह नाटक है
यह हिंदू मुस्लिम नाटक है
यह देशभक्ती भी नाटक है
यह राजनीती इक नाटक है
इन्सां के लिये सब घातक है
बस नाटक है...
वहां जम्मू कश्मीर तोड दिया
आसाम का सिर भी फोड दिया
और महाराष्ट्र से पंगा लिया
यह पडोस का कर्नाटक है
बस नाटक है...
क्यूँ चिता प्रेम की जलती है
हम तुम सब की यह गलती है
नफरत की ईंटो से बांध रखी
दीवार यहाँ से वहाँ तक है
बस नाटक है...
यह दीवार हमें ही गिरानी है
यह जंग तो सदियों पुरानी है
हम साथ लढें तो हरा सकें
नहीं उनमें इतनी ताकत है
बस नाटक है...
यह एनआरसी इक नाटक है
यह सीएए इक नाटक है
यह मंदिर मस्जिद नाटक है
यह तीन सौ सत्तर नाटक है
इन्सां के लिये सब घातक है
दीवार यहाँ से वहाँ तक है
नहीं उनमें इतनी ताकत है
बस नाटक है भाई नाटक है...
@aksharmann
18/01/2020
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नाटक है...
Monday, July 8, 2019
शिक्षा का अधिकार
हमें सबको बताना है।
शिक्षा का अधिकार
हमें सबको दिलाना है।
ना पैसे की अब चिंता
ना कागज कोई जरुरी।
बस मन में हो इच्छा
हमें सबको पढाना है।
शिक्षा का अधिकार…
अब सारे बच्चे पढेंगे
पढ-लिख कर आगे बढेंगे।
इस देश को दुनिया में
आगे ले जाना है।
शिक्षा का अधिकार…

शिक्षा का अधिकार
Saturday, January 6, 2018
Saturday, December 30, 2017
Sunday, July 16, 2017
रंजिश ही सही...
आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिए आ
पहले से मरासिम ना सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-राहे दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बतायेंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
इक उम्र से हूँ लज्जत-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-खुश फहम को तुझसे हैं उम्मीदें
ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिए आ
माना की मोहब्बत का छिपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज जताने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ
- अहमद फराज / तालिब बागपती
- मेहदी हसन
रंजिश = दुःख
मरासिम = नातं
पिन्दार = इगो
लज्जत = स्वाद
गिरिया = रडू, अश्रू

रंजिश ही सही...
Saturday, February 25, 2017
इन्सान
इश्क और हुस्न की होती न कोई जात प्यारे
दिल से भी जिस्म से भी हम हैं बस इन्सान प्यारे
आरजू सब की है कुछ जिंदगी में कर दिखाएँ
कोई कोशिश करे और कोई बस तकरार प्यारे
दिल से भी जिस्म से भी...
दुख और दर्द तो हैं सब को बराबर में मिले
कोई हर पल हँसे, उम्रभर कोई परेशान प्यारे
दिल से भी जिस्म से भी...
दो हाथ दो पैर दो आँखें हैं सभी को जो मिली
हम जैसा ही कोई कैसे बने फिर भगवान प्यारे
दिल से भी जिस्म से भी...
- मंदार शिंदे 9822401246

इन्सान
Saturday, July 16, 2016
अतरंगी यारी
चल माना.. इस बारी
सारी.. मेरी फिक्रें.. तेरे आगे आके हारी
खूब है लगी.. मुझको तेरी बिमारी...
इस बेढंगी दुनिया के संगी
हम ना होते यारा
अपनी तो यारी अतरंगी है रे...
कर बेरंगी शामें हुडदंगी
मस्त-मलंगी यारा
अपनी तो यारी अतरंगी है रे...
अतरंगी रे...
हो... बिन कहे.. ठहरा तू.. हर मोड पर
हो यारा.. मेरे लिए
भूला तू.. खुद की डगर..
ओ यारा.. मेरे लिए
हर कदम.. संग चली.. तेरी यारी
इस बेढंगी दुनिया के संगी
हम ना होते यारा
अपनी तो यारी अतरंगी है रे...
कर बेरंगी शामें हुडदंगी
मस्त-मलंगी यारा
अपनी तो यारी अतरंगी है रे...
अतरंगी रे...
यारी.. तेरी यारी..
चल माना.. इस बारी
सारी.. मेरी फिक्रें.. तेरे आगे आके हारी
खूब है लगी.. मुझको तेरी बिमारी...
गीतः दीपक रमोला / गुरप्रीत सैनी
संगीतः रोचक कोहली
गायकः अमिताभ बच्चन, फरहान अख्तर

अतरंगी यारी
Friday, March 20, 2015
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही
आहटों से अंधेरे चमकते रहे
रात आती रही, रात जाती रही
गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाइयाँ
दूर बजती रहीं कितनी शहनाइयाँ
जिंदगी जिंदगी को बुलाती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही
कतरा कतरा पिघलता रहा आसमाँ
रुह की वादियों में न जाने कहाँ
इक नदी दिलरुबा गीत गाती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही
आप की गर्म बाहों में खो जायेंगे
आप की नर्म जानों पे सो जायेंगे
मुद्दतों रात नींदें चुराती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही
- जाँ निसार अख्तर / खय्याम / लता मंगेशकर
'शंकर हुसैन' पिक्चरमधलं हे गाणं खास लतादीदींच्या आवाजातल्या शेवटच्या कडव्यासाठी तरी ऐकलंच पाहिजे. 'मुद्दतों रात नींदे चुराती रही' या ओळीआधीचा पॉज आणि नंतरचा इफेक्ट शब्दांत मांडता येणार नाही, फीलच करावा लागेल... आप यूँऽऽ फासलों से...
(यूट्युबवर शोधलं नाही, पण 'विविधभारती'वर अधून-मधून लागतं हे गाणं.)

आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
Sunday, January 11, 2015
आज-कल याद कुछ और रहता नहीं
हुस्न के कितने किस्से कितने पुराने सुने
ऐसा लगता है फिर इस तरह टूट कर
प्यार हमने किया इक जमाने के बाद...
आज-कल याद कुछ और रहता नहीं
एक बस आप के याद आने के बाद...
- आनंद बक्षी

आज-कल याद कुछ और रहता नहीं
Thursday, March 27, 2014
देश युवा है, हम युवा हैं
जीतेंगे, विश्वास हुवा है
आने दो जो आँधी आये
पक्का अपना बेस हुवा है
सोच है, जोश है, और हमारे
बडे-बुजुर्गों की दुवा है
सबको लेकर साथ है चलना
दिल को ये एहसास हुवा है
देश युवा है, हम युवा हैं
जीतेंगे, विश्वास हुवा है

देश युवा है, हम युवा हैं
Saturday, March 1, 2014
मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता
वो कमरे बंद हैं कबसे
जो चोबीस सीढियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती
मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता
वहाँ कमरों में, इतना याद है मुझको
खिलौने एक पुरानी टोकरी में भर के रखे थे
बहुत से तो उठाने, फेंकने, रखने में चूरा हो गए
वहाँ एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता था.
मेरा एक दोस्त था, तोता, वो रोज़ आता था
उसको एक हरी मिर्ची खिलाता था
उसी के सामने एक छत थी, जहाँ पर
एक मोर बैठा आसमां पर रात भर
मीठे सितारे चुगता रहता था
मेरे बच्चों ने वो देखा नहीं,
वो नीचे की मंजिल पे रहते हैं
जहाँ पर पियानो रखा है, पुराने पारसी स्टाइल का
फ्रेज़र से ख़रीदा था, मगर कुछ बेसुरी आवाजें करता है
के उसकी रीड्स सारी हिल गयी हैं,
सुरों के ऊपर दूसरे सुर चढ़ गए हैं
उसी मंज़िल पे एक पुश्तैनी बैठक थी
जहाँ पुरखों की तसवीरें लटकती थी
मैं सीधा करता रहता था, हवा फिर टेढा कर जाती
बहू को मूछों वाले सारे पुरखे क्लीशे लगते थे
मेरे बच्चों ने आखिर उनको कीलों से उतारा,
पुराने न्यूज़ पेपर में उन्हें महफूज़ कर के रख दिया था
मेरा भांजा ले जाता है फिल्मो में
कभी सेट पर लगाता है, किराया मिलता है उनसे
मेरी मंज़िल पे मेरे सामने
मेहमानखाना है, मेरे पोते कभी
अमरीका से आये तो रुकते हैं
अलग साइज़ में आते हैं वो जितनी बार आते हैं,
ख़ुदा जाने वही आते हैं या
हर बार कोई दूसरा आता है
वो एक कमरा जो पीछे की तरफ बंद है,
जहाँ बत्ती नहीं जलती,
वहाँ एक रोज़री रखी है, वो उससे महकता है,
वहां वो दाई रहती थी कि जिसने
तीनों बच्चों को बड़ा करने में
अपनी उम्र दे दी थी, मरी तो मैंने
दफनाया नहीं, महफूज़ करके रख दिया उसको.
और उसके बाद एक दो सीढिया हैं,
नीचे तहखाने में जाती हैं,
जहाँ ख़ामोशी रोशन है, सुकून सोया हुआ है,
बस इतनी सी पहलू में जगह रख कर,
के जब मैं सीढियों से नीचे आऊँ तो
उसी के पहलू में बाज़ू पे सर रख कर सो जाऊँ
मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता...
- गुलज़ार

मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता