ज़िन्दा हो हाँ तुम कोई शक नहीं
साँस लेते हुए देखा मैंने भी है
हाथ ओ' पैरों और जिस्म को हरकतें
ख़ूब देते हुए देखा मैंने भी है...
अब भले ही ये करते हुए होंठ तुम
दर्द सहते हुए सख़्त सी लेते हो
अब है इतना भी कम क्या तुम्हारे लिए
ख़ूब अपनी समझ में तो जी लेते हो...
~ पीयूष मिश्रा
