ऐसी अक्षरे

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मंदार शिंदे
Mandar Shinde

Sunday, July 17, 2011

बूँदे बारीश की...

पलकों पे सजाये फिरते थे, वो चार बूँदे बारीश की,
कोई पूछे तो शरमा के कहते, दो मेरी है और दो उनकी...

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2 comments:

  1. क्या बात है, बहोत खूब !!

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  2. फिर पलट आयी है, सावन की सुहानी रातें.....
    फिर तेरी याद में, जलने के ज़माने आये!.

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