ऐसी अक्षरे

:- कथा
:- कविता
:- लेख
:- अनुवाद
:- हिंदी
:- English
:- संग्रह
:- इतर

मंदार शिंदे
Mandar Shinde

Tuesday, July 19, 2011

अपने होने पर मुझको यकीं आ गया...

पिघले नीलम सा बेहता यह समा,
नीली नीली सी खामोशियाँ,
ना कहीं है ज़मीं ना कहीं है आसमाँ,
सरसराती हुई टेहनियाँ पत्तियाँ,
कह रही है बस एक तुम हो यहाँ,
बस मैं हूँ, मेरी साँसें हैं और मेरी धडकनें,
ऐसी गेहराइयाँ, ऐसी तनहाइयाँ, और मैं... सिर्फ मैं.
अपने होने पर मुझको यकीं आ गया.

- जावेद अख़्तर
(ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा)

Share/Bookmark

No comments:

Post a Comment