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मंदार शिंदे
Mandar Shinde
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Tuesday, July 19, 2011

तो ज़िंदा हो तुम...

दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
नज़र में ख़्वाबों की बिजलीयाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
हवा के झोंकों के जैसे आझाद रहना सीखो
तुम एक दरीया के जैसे लेहरों में बेहना सीखो
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल इक नया समाँ देखे यह निगाहें
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम

- जावेद अख़्तर
(ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा)

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अपने होने पर मुझको यकीं आ गया...

पिघले नीलम सा बेहता यह समा,
नीली नीली सी खामोशियाँ,
ना कहीं है ज़मीं ना कहीं है आसमाँ,
सरसराती हुई टेहनियाँ पत्तियाँ,
कह रही है बस एक तुम हो यहाँ,
बस मैं हूँ, मेरी साँसें हैं और मेरी धडकनें,
ऐसी गेहराइयाँ, ऐसी तनहाइयाँ, और मैं... सिर्फ मैं.
अपने होने पर मुझको यकीं आ गया.

- जावेद अख़्तर
(ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा)

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दिल आखिर तू क्यूँ रोता है...

जब जब दर्द का बादल छाया
जब घूम के साया लेहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब यह तनहा दिल घबराया
हमने दिल को यह समझाया
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है
दुनिया में यूँही होता है
यह जो गेहरे सन्नाटे हैं
वक्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोडा ग़म है सबका किस्सा
थोडी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम़ है
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है

- जावेद अख़्तर
(ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा)

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