ऐसी अक्षरे

:- कथा
:- कविता
:- लेख
:- अनुवाद
:- हिंदी
:- English
:- संग्रह
:- इतर

मंदार शिंदे
Mandar Shinde

Friday, March 20, 2015

आप यूँ फासलों से गुजरते रहे

आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही
आहटों से अंधेरे चमकते रहे
रात आती रही, रात जाती रही

गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाइयाँ
दूर बजती रहीं कितनी शहनाइयाँ
जिंदगी जिंदगी को बुलाती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही

कतरा कतरा पिघलता रहा आसमाँ
रुह की वादियों में न जाने कहाँ
इक नदी दिलरुबा गीत गाती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही

आप की गर्म बाहों में खो जायेंगे
आप की नर्म जानों पे सो जायेंगे
मुद्दतों रात नींदें चुराती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज आती रही

- जाँ निसार अख्तर / खय्याम / लता मंगेशकर

'शंकर हुसैन' पिक्चरमधलं हे गाणं खास लतादीदींच्या आवाजातल्या शेवटच्या कडव्यासाठी तरी ऐकलंच पाहिजे. 'मुद्दतों रात नींदे चुराती रही' या ओळीआधीचा पॉज आणि नंतरचा इफेक्ट शब्दांत मांडता येणार नाही, फीलच करावा लागेल... आप यूँऽऽ फासलों से...
(यूट्युबवर शोधलं नाही, पण 'विविधभारती'वर अधून-मधून लागतं हे गाणं.)


Share/Bookmark