ऐसी अक्षरे

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मंदार शिंदे
Mandar Shinde

Monday, November 23, 2020

Dreams and Their Meanings

बेहद उमस! मन की गहरी से गहरी पर्त में एक अजब-सी बेचैनी। नींद आ भी रही है और नहीं भी आ रही। नीम की डालियाँ खामोश हैं। बिजली के प्रकाश में उनकी छायाएँ मकानों, खपरैलों, बारजों और गलियों में सहमी खड़ी हैं।

मेरे अर्धसुप्त मन में असंबद्ध स्वप्न-विचारों का सिलसिला।

स्वर्ग का फाटक। रूप, रेखा, रंग, आकार कुछ नहीं जैसा अनुमान कर लें। अतियथार्थवादी कविताएँ जिनका अर्थ कुछ नहीं जैसा अनुमान कर लें। फाटक पर रामधन बाहर बैठा है। अंदर जमुना श्वेतवसना, शांत, गंभीर। उसकी विश्रृंखल वासना, उसका वैधव्य, पुरइन के पत्तों पर पड़ी ओस की तरह बिखर चुका है, वह वैसी ही है जैसी तन्ना को प्रथम बार मिली थी।

फाटक पर घोड़े की नालें जड़ी हैं। एक, दो, असंख्य! दूर धुंधले क्षितिज से एक पतला धुएँ की रेखा-सा रास्ता चला आ रहा है। उस पर कोई दो चीजें रेंग रही हैं। रास्ता रह-रह कर काँप उठता है, जैसे तार का पुल।

बादलों में एक टार्च जल उठती है। राह पर तन्ना चले आ रहे हैं। आगे-आगे तन्ना, कटे पाँवों से घिसलते हुए, पीछे-पीछे उनकी दो कटी टाँगें लड़खड़ाती चली आ रही है। टाँगों पर आर.एम.एस. के रजिस्टर लदे हैं।

फाटक पर पाँव रुक जाते हैं। फाटक खुल जाते हैं। तन्ना फाइल उठा कर अंदर चले जाते हैं। दोनों पाँव बाहर छूट जाते हैं। बिस्तुइया की कटी हुई पूँछ की तरह छटपटाते हैं।

कोई बच्चा रो रहा है। वह तन्ना का बच्चा है। दबे हुए स्वर : यूनियन, एस.एम.आर., एम.आर.एस., आर.एम.एस., यूनियन। दोनों कटे पाँव वापस चल पड़ते हैं, धुएँ का रास्ता तार के पुल की तरह काँपता है।

दूर किसी स्टेशन से कोई डाकगाड़ी छूटती है।...

...मेरा मन और भी उदास हो गया और मैंने सोचा चलो माणिक मुल्ला के यहाँ ही चला जाए। मैं पहुँचा तो देखा कि माणिक मुल्ला चुपचाप बैठे खिड़की की राह बादलों की ओर देख रहे हैं और कुरसी से लटकाए हुए दोनों पाँव धीरे-धीरे हिला रहे हैं। मैं समझ गया कि माणिक मुल्ला के मन में कोई बहुत पुरानी व्यथा जाग गई है क्योंकि ये लक्षण उसी बीमारी के होते हैं। ऐसी हालत में साधारणतया माणिक-जैसे लोगों की दो प्रतिक्रियाएँ होती हैं। अगर कोई उनसे भावुकता की बात करे तो वे फौरन उसकी खिल्ली उड़ाएँगे, पर जब वह चुप हो जाएगा तो धीरे-धीरे खुद वैसी ही बातें छेड़ देंगे। यही माणिक ने भी किया। जब मैंने उनसे कहा कि मेरा मन बहुत उदास है तो वे हँसे और मैंने जब कहा कि कल रात के सपने ने मेरे मन पर बहुत असर डाला है तो वे और भी हँसे और बोले, 'उस सपने से तो दो ही बातें मालूम होती हैं।'

'क्या?' मैंने पूछा।

'पहली तो यह कि तुम्हारा हाजमा ठीक नहीं है, दूसरे यह कि तुमने डांटे की 'डिवाइना कामेडिया' पढ़ी है जिसमें नायक को स्वर्ग में नायिका मिलती है और उसे ईश्वर के सिंहासन तक ले जाती है।' जब मैंने झेंप कर यह स्वीकार किया कि दोनों बातें बिलकुल सच हैं तो फिर वे चुप हो गए और उसी तरह खिड़की की राह बादलों की ओर देख कर पाँव हिलाने लगे।


'सूरज का सातवाँ घोडा'
लेखक : धर्मवीर भारती


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Tuesday, November 17, 2020

Migration of Visuals

 


The all-day running news channels have to compete not only with other news channels, but also with the channels showing serials, movies, sports, songs, and even cartoon programmes. Because the audience with a remote control in their hands can switch within a moment from the news to a serial or a movie or a sport. As a result, the news also become dramatic and musical like the movies; sometimes as entertaining as the cartoons. This ongoing migration of the visuals occurs every moment, thanks to the remote control in our hands.


    This also applies to the migration of visuals in another frame present all the time in our hands. We assume that we are running our own channels - for some of us, it is a channel creating social awareness all the time; for some, it is a channel for expression against the establishment. But when we lose the most important sense of responsibility, we too start being dramatic like our competitors, with only difference in the details of the dramatization.


- Avdhoot Dongre



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Sunday, November 15, 2020

Tu Gelyavar - Borkar Poem

 



तू गेल्यावर फिके चांदणे, घरपरसूंही सुने-सुके

मुले मांजरापरी मुकी अन् दर दोघांच्या मधे धुके


तू गेल्यावर घरांतदेखिल पाउल माझे अडखळते

आणि आटुनी हवा भवतिची श्वासास्तव मन तडफडते


तू गेल्यावर या वाटेने चिमणीदेखिल नच फिरके

कसे अचानक झाले न कळे सगळे जग परके परके


तू गेल्यावर जडून पनगत लागे पिंपळ हाय गळू

गळ्यांतले मम गाणे झुरते : वाटे मरते हळूहळू


तू गेल्यावर दो दिवसांस्तव जर ही माझी अशी स्थिती

खरीच माझ्या आधी गेलीस तर मग माझी कशी गती?


- बा.भ. बोरकर



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Monday, November 9, 2020

Marathi Shayari by Bhausaheb Patankar


 

ओळखी नव्हती तरीही, भेटावया आले मला

खांद्यावरी अपुल्या स्वत:च्या, वाहुनी नेले मला

ना कळे की पूर्वजन्मी, काय मी त्यांना दिले

इतके खरे की आज त्यांना, थँक्सही नाही दिले

- भाऊसाहेब पाटणकर


मृत्यो, अरे येतास जर का, थोडा असा आधी तरी

ऐकुनी जातास तूही, शेर एखादा तरी

एकही नाही कला तू, मानवांची पाहिली

जेथे जिथे गेलास त्यांची, मातीच नुसती पाहिली

- भाऊसाहेब पाटणकर



ऐसे नव्हे मृत्यूस आम्ही, केव्हाच नाही पाहिले

खूप आहे पाहिले त्या, प्रत्येक जन्मी पाहिले

मारिले आहे आम्हीही, मृत्यूस या प्रत्येकदा

नुसतेच ना मेलो आम्ही, जन्मलो प्रत्येकदा

- भाऊसाहेब पाटणकर




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