शरारत किसने की मैंने या तूने
छोडो भी नजरें ये सब जानती हैं
छुपाए राज कितने सीने में
छोडो भी हवाएँ सब जानती हैं
वफादारी की खाई कसमें कितनी
छोडो भी हसिनाएँ कहाँ मानती हैं
ऐसी अक्षरे
Wednesday, May 2, 2012
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या ब्लॉगवरचे विचार आणि शब्द मुक्त आहेत. तुम्ही वाचा आणि इतरांनाही वाचू द्या. - मंदार
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