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मंदार शिंदे
Mandar Shinde

Wednesday, March 16, 2011

परछाई

ढूँढते रहे उनकी आँखोंमें खुदको
और सोचते रहे बस एक ही बात
वो खुबसूरती जिसपे हुए हम फिदा
न जाने शायद हमारी ही परछाई थी

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