मैं देखता रहता हूँ
गाडीयाँ आती-जाती रहती हैं
लोग चढते-उतरते रहते हैं
कोई किसी को नहीं पहचानता
फिर कोई अजनबी आता है
मुझ पर दया खाकर पूछता है
'बेटा, क्या तुम गुम हो गये हो?'
मैं कुछ नहीं कहता
उस भले इन्सान को नहीं बताता
की मैं तो हूँ मौजूद यहीं
गुमशुदा तो मेरे माँ-बाप हैं
मैं चलने को हूँ तैयार
मगर रास्ता ही गुमशुदा है...
- अक्षर्मन
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