पिघले नीलम सा बेहता यह समा,
नीली नीली सी खामोशियाँ,
ना कहीं है ज़मीं ना कहीं है आसमाँ,
सरसराती हुई टेहनियाँ पत्तियाँ,
कह रही है बस एक तुम हो यहाँ,
बस मैं हूँ, मेरी साँसें हैं और मेरी धडकनें,
ऐसी गेहराइयाँ, ऐसी तनहाइयाँ, और मैं... सिर्फ मैं.
अपने होने पर मुझको यकीं आ गया.
- जावेद अख़्तर
(ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा)
ऐसी अक्षरे
Tuesday, July 19, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment