दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
नज़र में ख़्वाबों की बिजलीयाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
हवा के झोंकों के जैसे आझाद रहना सीखो
तुम एक दरीया के जैसे लेहरों में बेहना सीखो
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल इक नया समाँ देखे यह निगाहें
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िंदा हो तुम
- जावेद अख़्तर
(ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा)
ऐसी अक्षरे
Tuesday, July 19, 2011
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